उमेश यादव: कोयला खदान-मज़दूर का बेटा जो फौज में भर्ती नहीं हो पाया, तो तेज गेंदबाज बन गया

उमेश यादव: कोयला खदान-मज़दूर का बेटा जो फौज में भर्ती नहीं हो पाया, तो तेज गेंदबाज बन गया
आज से कोई 10 साल पहले भारतीय टीम में श्रीनाथ-ज़हीर-प्रसाद जैसे शानदार गेंदबाज़ थे. जो दुनिया के किसी भी बल्लेबाज को किसी भी पिच पर पानी पिला दें. लेकिन मीडियम पेसर के गेंद पर बाहरी किनारा लगकर बल्लेबाज़ को आउट होते देखने में वो मज़ा नहीं जो तेज़ गेंदबाज़ की गेंद पर किसी को बोल्ड होते हुए देखने में है. तेज़ गेंदबाज़ी के नाम पर भारत में 140-145 किमी घंटा की गेंदबाज़ी करने वाले गेंदबाज़ ही दिखते थे. एक-दो प्रतिभाएं आईं लेकिन उनकी पेस अकेडमी में ट्रेनिंग होती और स्पीड 5-6 किमी कम होकर 130 आ जाती. लगभग उसी समय, 19 साल की उम्र में एक कोयला खदान-मज़दूर का बेटा फौज और पुलिस की भर्ती में नाकाम होने के बाद तेज़ गेंदबाज़ी में कैरियर ट्राई करना शुरू करता है जिसे हम आज उमेश यादव के नाम से जानते हैं. उमेश यादव आज 29 साल के हो गए हैं. इनकी बायॉपिक बनेगी तो पर्दे पर ज्यादातर सीन 60 के दशक के गांवों के होंगे. गांव से काम के लिए कस्बे तक दौड़कर जाना, औरों के पेड़ों से आम-इमली चुराना, खदान-मज़दूर पिता के काम में हाथ बटाना. ये तो 60 के दशक की फिल्मों की आइडियल स्क्रीप्ट है. इस स्क्रीप्ट में फिर शहर की गौरी से कामयाब प्यार की भी कहानी आती है.
उमेश ने उस उम्र में क्रिकेट शुरू किया जब तेज़ गेंदबाज़ नेशनल टीम में जगह बना चुके होते हैं. 19-20 साल की उम्र में तक टेनिस गेंद से ही गेंदबाज़ी कर रहे थे. और लोकल मेलों-टूर्नामेंटों में टेनिस बॉल क्रिकेट खेलकर कोई 5000 रूपए तक कमा लेते थे. पिता जी चाहते थे कि घर में कोई भी पढ़ाई पूरी नहीं कर पाया, कम से कम छोटा बेटा ग्रेजुएशन तक तो पढ़ाई खत्म करे. परिवार चाहता था कि उमेश को स्थाई नौकरी मिल जाए. पुलिस और फौज की भर्ती भी देखी और असफल रहे. कॉलेज में जो खेल-खेलने को मिल जाए वो खेलते थे, खो-खो, कबड्डी और सुट्टा दौड़. 100 मी दौड़ में 10.56 सेकेंड का टाइम क्लॉक करते थे. एथलेटिक्स नेशनल ट्रायल में सेलेक्शन के लिए ये टाइमिंग काफी है. जीवन थोड़ा है-थोड़े की ज़रूरत है के अंदाज़ में कट रहा था कि काले चश्मों, नए कपड़ों, हिंदी गानों और अक्षय कुमार के फैन इस ग्रामीण के जीवन में एक मुलाक़ात ने खेल ही बदल दिया.
एक दोस्त के ज़रिए उमेश ने विदर्भ रणजी टीम से संपर्क किया और वहां मुलाकात होती है कप्तान प्रीतम गढे से. प्रीतम गढे ने उटपटांग लाइन लेंथ लेकिन आग सी तेज़ गेंदबाज़ी करने वाले इस गेंदबाज़ को देखा और आइडिया लगाया कि अगर ये 6 गेंदों में 3 भी सही टप्पे पर डाल गया तो कोहराम मचा देगा. ट्रायल में उमेश की गेंदों के सामने मंझे हुए रणजी खिालाड़ी भी हट रहे थे. प्रीतम गढे और विदर्भ के गेंदबाज़ी कोच सुब्रतो बैनर्जी ने उमेश यादव पर खूब मेहनत की और 3 नवंबर 2008 को यादव को पहली बार मौका मिला, मध्यप्रदेश के खिलाफ. अपना पहला ही विकेट लिया बोल्ड ! उस पारी में यादव ने 72-4 विकेट लिए और उस सीज़न के 4 मैचों में 14.6 की औसत से 20 विकेट लिए. विदर्भ को रणजी सर्किट में छोटी टीम माना जाता है. अब इस छोटी टीम के कोच-कप्तान को लगने लगा कि हमारी टीम का उमेश भारत का सबसे तेज़ गेंदबाज़ बनकर खेल सकता है.
विदर्भ से फटाफट रास्ता खुला और दिलीप ट्रॉफी में सेंट्रल ज़ोन की टीम से खेलने का मौका मिला और इस मौके पर उमेश ने वीवीएस लक्ष्मण और राहुल द्रविड का विकेट लेकर डोमेस्टिक सर्किट में तहलका मचा दिया. घर पर सबकुछ सही नहींं था. 2011 में लंबी बीमारी के बाद उमेश की माताजी का देहांत हो जाता है. वो डायबिटिक थीं और उमेश महंगे अस्पतालों में इलाज़ कराने लायक पैसेवाले हो पातें उससे पहले ही देर हो चुकी थी. उन दिनों भी उमेश क्रिकेट के लिए घर से बाहर थे. इस झटके से उबरने में उमेश को कुछ दिन लगे.
और फिर आता वह मौका जब कोच-कप्तानों की क्रिकेट बिरादरी के अलावा आम जनता को भी 150 किमी की रफ्तार से गेंद फेंकते भारतीय गेंदबाज़ को देखने का मौका मिलता है. उमेश यादव को आईपीएल में दिल्ली डेयरडेविल्स वाले चुन लेते हैं.
आईपीएल टीम में शामिल होने के बाद ही उमेश ने पहली बार देखा कि खिलाड़ी जिम में कैसे वर्कआउट करते हैं. उमेश यादव ने बिना जिम के ही पहलवानी देह बना ली. इनके पिता खदान-मज़दूर के साथ-साथ पहलवान भी थे. तो बच्चों की पहलवानी खुराक का पूरा इंतज़ाम रहता था – दूध, दाल और घी. उमेश की फिटनेस के साथ दूसरी चीज़ ये हुई की नागपुर में इनका गांव कस्बे से थोड़ा दूर था तो जब भी ज़रूरत पड़े दौड़ कर कस्बे तक पहुंचों. इस तरह का माहौल हो फिर विटामिन-न्यूट्रियंट नापकर खाने की ज़रूरत नहीं होती.
आखिरकार पुलिस-फौज में भर्ती न हो सकने वाले उमेश के जीवन में वह विलक्षण दिन भी उदय हो ही गया जिसके बारे में 2-3 साल पहले तक सोचा भी नहीं था. 2010 टी 20 वर्ल्ड कप में चोटिल प्रवीण कुमार की जगह उमेश यादव को शामिल किया गया और उसी साल नवंबर में साउथ अफ्रीका जाने वाली टीम के लिए चुन लिए गए. लेकिन पहली बार टेस्ट खेलने का मौका मिला इसके कोई एक साल बाद, दिल्ली में वेस्टइंडीज़ के खिलाफ. अपने पहले 2 टेस्ट मैचों में उमेश ने 9 विकेट लिए और ऑस्ट्रेलिया दौरे के लिए चुन लिए गए. वह दौरा भारत के लिए भूला देने लायक रहा लेकिन उस दौरे पर उमेश ने 14 विकेट लिए वो भी 8.1 ओवर प्रति विकेट के स्ट्राइक रेट के साथ. वहां एक मैच में 93-5 विकेट भी लिए, जिसमें कई गेंदे ऐसी थीं जो ऑस्ट्रेलिया वाले हमारे बल्लेबाज़ों पर मारते हैं.
150 किमी की रफ्तार से गेंदबाज़ी करने वाला जब गेंद छोड़ते वक्त पिच पर लैंड करता है, क्विंटलों न्यूटन बल लगाना पड़ता है. पीठ-एडी-टांग ऐसी हो जाती है मानो किसी ने तोड़कर फिर वैल्डिंग कर दी हो. चोट से कोई भी तेज़ गेंदबाज़ बचकर नहीं रह सकता और 2012 में चोट की वजह से यादव भी बाहर हो गए. फिर वापसी हुई 2013 चैंपियंस ट्रॉफी इंग्लैंड में. क्रिकेट में एक-दो साल गुज़ारने के बाद भारत के तेज़ गेंदबाज़ों की गति बह जाती है. उमेश यादव के साथ ऐसा नहीं हुआ. 2013 में चोट के बाद शादी कर के वापसी कर रहे उमेश लगातार 150 हिट कर रहे थे. उमेश की तेजी को ध्यान में रखकर उन्हें 2014 ऑस्ट्रेलिया दौरे और फिर 2015 वर्ल्ड कप के लिए भी चुन लिया गया. वर्ल्ड कप में उमेश तीसरे सबसे ज्यादा विकेट लेने वाले खिलाड़ी बने और 17.8 रन प्रति विकेट के हिसाब से 18 विकेट लिए. उसके बाद से भारतीय गेंदबाज़ों की टॉप लीग में लगातार बने हुए हैं.
देरी से शुरू करने का असर है कि उमेश यादव अपनी गति के बावजूद आज तक एक ही टप्पे पर 4 गेंदे डालने की लाइन नहीं पकड़ पाए हैं. उमेश यादव का पता नहीं क्या कर दें, वो पहली गेंद बाउंसर, दूसरी गेंद दूसरी स्लिप में और तीसरी गेंद यॉर्कर बोल्ड डाल सकते हैं. एक साधारण सा कैच छोड़ सकते हैं और थोड़ी ही देर में ऐसा कैच ले सकते हैं जो सबसे चुस्त फिल्डर भी न ले पाए. बैटिंग में लोकल टूर्नामेंटों में खूब लंबे हिट लगाते थे. इसका नमूना भारत-न्यूज़ीलैंड दूसरे वनडे मेें देखने को मिला जब आखिरी ओवर में भारत के दर्शक चाह रहे थे कि उमेश यादव स्ट्राइक पर रहे. कुल मिलाकर उमेश यादव वो मिसाइल है जो दाएं-बाएं गिर जाती है लेकिन जब निशाने पर गिरती है तो बल्लेबाज़ों को तबाह कर देती है. और जैसा कि धोनी हर प्रतिभाशाली खिलाड़ी के बारे में कहते हैं – वी नीड टू गिव हिम मोर मैचेज.
इधर रिटायरमेंट के बाद उमेश यादव के पिताजी ने अपने मूलस्थान देवरिया, उत्तर प्रदेश जाने का मन बनाया लेकिन उमेश का कैरियर परवान चढ़ा तब वही नागपुर में रहने का ही फैसला कर लिया. क्रिकेट शुरू करते वक्त उमेश ने अपने पिता से कहा था – पिता जी या तो आपको बर्बाद कर दूंगा या आपको आबाद कर दूंगा. फिलहाल महाराष्ट्र के नागपुर में ही रह रहे उमेश यादव के प्रिय मित्र शैलेश ठाकरे उनके मैनेजर हैं. मुंबई वहां से दूर है.

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